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ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने आईपीसीसी(IPCC) रिपोर्ट की चेतावनी पर कार्रवाई के बजाय बयानबाजी से प्रतिक्रिया दी।

कलिंगा सेनेविरत्ने द्वारा

सिडनी (आईडीएन)- जलवायु परिवर्तन(IPCC)पर अंतर- सरकारी पैनल द्वारा जारी सबसे व्यापक रिपोर्ट ने प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिए एक सख्त चेतावनी जारी की है, जहां समुद्र के बढ़ते स्तर और बढ़ते तापमान द्वीप राष्ट्रों को मिटा सकते हैं और शुष्क निवास स्थानों को निर्जन बना सकते हैं। लेकिन इस क्षेत्र की दो प्रमुख शक्तियों- ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड- ने क्षेत्र को बचाने के लिए तुरंत कार्रवाई लागू करने के बजाय रक्षात्मक बयान दे कर इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन जो कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने हेतु कार्रवाई के लिए बढ़ते पर्यावरण आंदोलन के दबाव में हैं, उन्होंने यह कहते हुए जवाब दिया: “मैं योजना विहीन लक्ष्य (ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने हेतु) के लिए ऑस्ट्रेलियाई लोगों की तरफ से एक खाली चेक पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा।” उन्होंने इंगित किया कि ऑस्ट्रेलिया अपनी प्रतिक्रिया इस समस्या के समाधान के लिए नई तकनीक के जरिए देगा। कुछ विवेचक मानते हैं कि यह तर्क महज एक रणनीति है ज्यादा समय लेने की ताकि ऑस्ट्रेलिया दुनिया को नई हरित तकनीक बेच कर बड़ा मुनाफा कमा सके।

इस बीच, न्यूजीलैंड में, वैज्ञानिकों ने सरकार के उस बयान की निंदा की जिसमें उन्होंने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए निर्धारित लक्ष्य को “दो सरकारें पहले” वाली कार्रवाई घोषित की, जिसके लिए प्रधानमंत्री जैसिंटा आर्डेन ने यह तर्क देते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की कि इस तरह की आलोचना अनुचित है, क्योंकि उनकी सरकार इस रिपोर्ट के निष्कर्षों का जवाब “हमारे उत्सर्जन में कमी और हमारे कार्बन बजट” की योजना बनाकर देने की प्रक्रिया में है।

“कुछ समय पहले निर्धारित किए गए लक्ष्यों के आधार पर न्यूजीलैंड को आंकना अनुचित होगा, जबकि हम अब अपनी आकांक्षा और उत्सर्जन में कमी दोनों को बढ़ाने का एक अविश्वसनीय रूप से भारी काम कर रहे हैं।”आर्डेन ने यह इंगित करते हुए तर्क दिया, कि न्यूजीलैंड ने पहले ही कृषि को उत्सर्जन व्यापार योजना “जो किसी अन्य देश ने नहीं किया है” में लाने का निर्णय लिया है।

उत्सर्जन व्यापार प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान कर प्रदूषण को नियंत्रित करने का एक बाजार-आधारित दृष्टिकोण है।

विक्टोरिया यूनिवर्सिटी ऑफ वेलिंग्टन में ग्लेशियोलॉजी के प्रोफेसर, और आईपीसीसी रिपोर्ट में महासागरों के अध्याय के प्रमुख लेखकों में से एक, निक गॉल्लेज ने ‘द कॉनर्वसेशन’ के लेख में व्याख्या की कि सबसे खराब स्थिति सामने आती है या नहीं यह तय नहीं है, लेकिन जिस पर संदेह नहीं है वह यह है कि आने वाली सदियों तक समुद्र का वैश्विक औसत स्तर बढ़ता रहेगा।

उन्होंने तर्क दिया “इसकी विशालता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि, हम सामूहिक तौर पर,ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को किस हद तक कम करने में सक्षम हैं, अंतर्निहित संदेश वही रहता है। जितना लंबा हम इंतजार करेंगे, परिणाम उतने ही विनाशकारी होंगे।”

कुछ समय से, दक्षिण प्रशांत के छोटे द्वीप राष्ट्र, जैसे तुवालु और किरिबाती, अपने राष्ट्र के सदी के अंत से पहले समुद्री जल में डूब जाने को लेकर चिंतित हैं, और अपनी आबादी को स्थानांतरित करने की योजना बना रहे हैं।

अक्टूबर 2017 में, आर्डेन के नेतृत्व में नई लेबर सरकार ने घोषणा की कि वे प्रत्येक वर्ष प्रशांत द्वीप देशों से 100 पर्यावरणीय शरणार्थियों को न्यूजीलैंड लाने के लिए एक प्रयोगात्मक मानवीय वीजा जारी करेंगे। लेकिन, जब प्रशांत द्वीप वासी यह नहीं चाहते थे तो न्यूजीलैंड ने इस विचार को छोड़ दिया, इसके बजाय, उन्होंने वेलिंग्टन को उत्सर्जन कम करने और अनुकूलन उपायों का समर्थन करने के लिए दृष्टिकोण स्थापित करने के लिए, और उन्हें शरणार्थी का दर्जा न देकर कानूनी देशांतरण का मार्ग प्रदान करने को कहा।

18-राष्ट्र प्रशांत द्वीप मंच हेनरी पुना ने चेतावनी दी है कि दुनिया एक जलवायु तबाही के कगार पर है, और जिन वैश्विक प्रक्रियाओं द्वारा प्रशांत और दुनियाभर में विनाशकारी प्रभाव पैदा होने की भविष्यवाणी की गई है उसे उलटने वाले कदमों की संभावना बहुत थोड़ी है। प्रशांत द्वीपवासी रिपोर्ट के निष्कर्षों से चिंतित हैं, जो बताती हैं कि 100 वर्षों में एक बार होने वाली चरम समुद्र-स्तर की घटनाएं इस सदी के अंत से पहले हर साल हो सकती हैं।

पुना का मानना है कि सरकार, बड़े व्यवसायों, और अन्य प्रमुख उत्सर्जकों को उन आवाजों को सुनना चाहिए जो पहले से ही सामने आ रहे पर्यावरणीय संकंटों को झेल रहे हैं। “वे अब क्रियाशीलता के बजाए बयानबाजी को नहीं चुन सकते हैं। अब कोई बहाने बनाने के लिए नहीं बचे हैं। हम आज जो कर रहे हैं उसके परिणाम अभी और भविष्य में हम सभी को भुगतने होंगे,” उन्होंने रेडियो न्यूजीलैंड (आरएनजेड) को बताया। “जलवायु पर असर डालने वाले कारणों को पलटा जा सकता है,अगर लोग अभी कदम उठाते हैं तो।”

नवीनतम आईपीसीसी रिपोर्ट में पिछली रिपोर्ट के बाद से पिछले सात सालों में दुनियाभर में हुए पर्यावरण बदलावों को ध्यान में रखा गया है, और उत्सर्जन में तेजी से कमी लाने की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि आने वाले सालों में भयानक जलवायु विनाश से बचा जा सके जो कि 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा वॉर्मिंग होने पर आएंगे। ऑस्ट्रेलियाई उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य वार्मिंग में कटौती के अनुरूप हैं जो 2-3 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग प्रदान करेगा, जिसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसा कि आईपीसीसी की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है।

एक साल पहले, ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में सदी की सबसे भयानक आग लगी थी, जिसमें अनुमानित 34 लोगों की जान गई, 18.6 मिलियन हेक्टेयर जमीन जल गई, और कृषिज संपत्ति और समुदायों को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ। इस साल की शुरुआत में, ठोस पैरवी के बाद, ऑस्ट्रेलिया विश्व विरासत-सूचीबद्ध ग्रेट बैरियर रीफ को यूनेस्को द्वारा “खतरे में” के रूप में नामित होने से बचा पाने में कामयाब रहा।

इस बीच, भारतीय- स्वामित्व वाली अडानी कंपनी, जो ऑस्ट्रेलिया में ब्रावस माइनिंग एंड रिसोर्सेज के रूप में काम करती है, जिन्हें क्ववींसलैंड में अपने माइनिंग परियोजना के लिए जबरदस्त समुदाय-आधारित विरोध झेलना पड़ा था, ने जून में घोषणा की कि उन्होंने कारमाइकल खदान में कोयला खनन कार्य शुरू कर दिया है और भारत में उनका पहला शिपमेंट इस साल के अंत में शुरू होगा। यह पहले से ही एक वर्ष में 10 मिलियन टन कोयले का निर्यात करने के लिए बाजारों को सुरक्षित कर चुका है, उनका दावा है कि यह उच्च श्रेणी का कोयला है जो “स्वच्छ ऊर्जा” मिश्रण देता है। अपनी वेबसाइट पर ब्रावस के सीईओ डेविड बोशॉफ कहते हैं,” भारत को ऊर्जा मिलेगी जिसकी उन्हें आवश्यकता है और ऑस्ट्रेलिया को इस प्रक्रिया में नौकरी और आर्थिक लाभ मिलेगा।”

आईपीसीसी की रिपोर्ट जारी होने से पहले ही, मॉरिसन सरकार का रुख रहा है कि वह दुनिया को बचाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालेगी, और भारत और चीन जैसे देशों को वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में अधिक भूमिका निभाने की आवश्यकता है।

सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड में छपी एक टिप्पणी में ऑस्ट्रेलियाई पेट्रोलियम प्रोडक्शन एंड एक्सप्लोरेशन एसोसिएशन के मुख्य कार्यकारी एंड्रयू मैककॉनविल ने,मॉरिसन सरकार के दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित किया। उन्होंने तर्क दिया कि उनका उद्योग “स्वच्छ ऊर्जा मिश्रण” को वितरित करने का हिस्सा हो सकता है, और केवल हाइड्रोकार्बन पर प्रतिबंध लगाकर सब सही होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

वह कहते हैं, “बहुत लंबे समय से, जलवायु परिवर्तन संवाद एक साधारण सी अच्छी बनाम बुरी बहस रही है।” “या तो आप अपनी हिल्क्स त्यागें, अंतरराष्ट्रीय यात्राएं बंद करें, अपने काम करने, खाना बनाने और जिस तरह आप अपना घर गर्म करते हैं उन सभी तरीकों को बदलें-और पूरे संसाधन उद्योग को सज़ा दें-या पूर्ण-शून्य उत्सर्जन को प्राप्त करने में विफल रहें।”

मैककॉनविल का कहना है कि यदि उद्योग बंद होता है तो सरकार को 66 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा जो रॉयल्टी के तौर पर उन्हें दी जाती है जिससे “अस्पताल, पुलिस स्टेशन, सड़कें और स्कूल बनते हैं”, यह 450 मिलियन डॉलर का निवेश ग्रामीण समुदायों में करते हैं, और 80,000 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियां प्रदान करते हैं।

ग्रीनहाउस उत्सर्जन कम करने वाले प्रौद्योगिकी उद्योग से लाभ के लिए अपने कार्यों में विविधता लाने पर इशारा करते हुए, उनका कहना है कि उनका उद्योग उत्सर्जन में कमी लाने वाले प्रौद्योगिकियों में अरबों निवेश कर रहा है क्योंकि “हमें और अधिक करने की आवश्यकता है, खासकर चीन और भारत की प्रमुख उत्सर्जन-गहन अर्थव्यवस्थाओं में अगर हम उत्सर्जन को कम करना चाहते हैं तो।”

कैंटरबरी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रोनविन हार्वर्ड जो आईपीसीसी रिपोर्ट की प्रमुख लेखन टीम के सदस्य थे, का कहना है कि विकसित देशों पर अब कार्रवाई करने के लिए दबाव है, और नवंबर में ग्लासगो में ‘पेरिस समझौते’ सम्मेलन में एक अच्छा भाषण देना पर्याप्त नहीं है। “अगर बाकी दुनिया ने वही किया जो हम (न्यूजीलैंड) करते हैं तो हम 3 डिग्री गर्म होंगे,” वह तर्क देती हैं कि जो होना चाहिए वह यह है कि सामाजिक कदम उठाए जाएं जैसे शहरों में मुफ्त सार्वजनिक परिवहन प्रदान करना और यातायात भीड़ शुल्क शुरू करना और नई कार्बन-तटस्थ नौकरियां पैदा करना।

प्रोफेसर हार्वर्ड का तर्क है “मिलकर सोचें, हमारे सामाजिक विकास मंत्रालय और हमारे पर्यावरण मंत्रालय साथ आएं और सोचें कि असल में एक नई निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था कैसी होगी जो लोगों के लिए काम करेगी?”

प्रशांत समुदाय के क्षेत्रीय विज्ञान एजेंसी के वरिष्ठ सलाहकार, कोरल पासीसी, ने आरएनजेड को बताया कि अगले 10 साल इस क्षेत्र के लिए काफी महत्वपूर्ण थे। उन्होंने कहा “अब तक किए गए सभी मूल्यांकन दर्शाते हैं कि 1.5 डिग्री वॉर्मिंग से ऊपर कुछ भी बेहद गंभीर होने वाला है। और हाल के समय तक, देशों द्वारा की गई सर्वोत्तम प्रतिबद्धताओं के बावजूद, अगले 10 सालों के अंदर वार्मिंग में 2.5 डिग्री तक बढ़ोतरी की संभावना है,” उन्होंने कहा।

“हम जानते हैं कि 2 डिग्री से ऊपर (हम देखेंगे) 99 प्रतिशत तक प्रवाल भित्तियां खत्म हो जाएंगी जिस पर प्रशांत आबादी अपनी खाद्य सुरक्षा के लिए निर्भर करती है, इससे पूरा इकोसिस्टम प्रभावित होगा।” [आईडीएन-इनडेप्थन्यूज – 12 अगस्त 2021]”

छवि: प्रशांत महासागर में द्वीपों के प्रमुख समूहों में से तीन: माइक्रोनेशिया, मेलानेशिया और पोलिनेशिया। स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स।

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