सीन ब्यूकेनन द्वारा
न्यू यॉर्क (IDN) – दुनियाभर के उपासना स्थलों पर हाल ही में हुए घृणा से प्रेरित कई हमलों के बाद, 2 मई को आयोजित हुई अंतरसांस्कृतिक संवाद की एक संगोष्ठी में कहा गया कि “इन सभी नृशंस एवं कायरतापूर्ण हमलों में… हमें एक तरह की समानता दिखाई देती है: ‘दूसरे’ से घृणा। ये अपराधी संपूर्ण आस्था समुदायों को अपने प्रभाव में लेकर, धर्मों को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर रहे हैं।”
अलाइअन्स ऑफ सिवलाइज़ेशन (UNOAC) के उच्च प्रतिनिधि, मिगेल ऐंजल मोरातीनोस ने, बाकू, अज़रबैजान में यूएन समर्थित 5वे वर्ल्ड फोरम ऑन इंटरकल्चरल डायलॉग के दौरान संबोधन करते हुए, कहा कि आस्था कभी भी समस्या नहीं थी, समस्या वे लोग हैं “जो धार्मिक पुस्तकों की विकृत व्याख्या के द्वारा आस्थावानों को धूर्तता से दिग्भ्रमित करके एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर देते हैं।”
उन्होंने, यह कहते हुए कि हिंसक चरमपंथी “हमारे समाजों को बाँटकर उनमे अस्थिरता के बीज बोने” का प्रयास करते हैं,” वर्णन किया कि, “लंबे समय से चले आ रहे संघर्षों, आतंकवाद, और हिंसक चरमपंथ के बीच का परिवर्तनशील गठजोड़ अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए अविरत रूप से चुनौती बना हुआ है।”
मोरातीनोस ने कहा कि 5वी संगोष्ठी का विषय – भेद-भाव, असमानता और हिंसक चरमपंथ के विरुद्ध कार्यवाही हेतु संवाद – अत्यंत समयोचित था क्योंकि इसमे कोई शक नहीं कि संगोष्टी में भाग लेने वाले हाल ही के दिनों और महीनों में हुए “भयावह आतंकवादी हमलों” पर विचार करेंगे।
यह समझाते हुए कि एक दिन पहले वे कोलंबो, श्रीलंका, में थे, जहाँ उन्होंने कैथलिक गिरजाघरों और होटलों पर हुए आतंकवादी हमलों, जिनमे ईस्टर, रविवार के दिन 250 से अधिक लोग मारे गए थे, के पीड़ित लोगों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की, मोरातीनोस ने कहा कि, “मैं आज आपके सामने भारी दिल के साथ खड़ा हूँ”।
उपासना स्थलों को निशाना बनाने वाले “घृणा से प्रेरित अपराधों एवं आतंकी हमलों में वृद्धि” का हवाला देते हुए, मोरातीनोस ने कहा कि यह हमें एक कड़वी सच्चाई याद दिलाता है कि ऐसी अकथनीय हिंसा से “कोई धर्म, देश या नस्ल” सुरक्षित नहीं है।
वे याद करते हुए कहते हैं कि जब यहूदी उपासक पासओवर का अंतिम दिन मना रहे थे तब कैलिफ़ोर्निया में एक सिनेगोग पर हमला हुआ था, और उस पिछले साल पिट्सबर्ग के एक सिनेगोग में जान लेने के इरादे से गोलीबारी की गई। ये घटनाएं, अप्रैल में न्यूज़ीलैण्ड की मस्जिद के भीतर उपासना कर रहे मुस्लिमों के नरसंहार के साथ साथ फिलिपीन्स में एक कैथेड्रल पर हमले के सहित इसी प्रकार की हिंसा के बीच घटित हुई हैं।
मोरतीनोस के अनुसार, डार्क वेब, “उनकी विकृत विचारधारों को उगलने” के लिए उग्र-सुधारवादियों, श्वेत-सुप्रीमेंसिस्ट और अति-दक्षिणपंथी अधिवक्ताओं को स्थान प्रदान करता है, के सहित सोशल मीडिया “भड़कती हुई आग में घी” डालने का ही काम करता है।
वे इस मत पर कायम रहे कि हिंसक चरमपंथ को रोकना और उसके परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाली दीर्घकालिक शांति अनुपूरक और परस्पर रूप से सहायक लक्ष्य हैं।
उन्होंने इसपर जोर दिया कि, “संघर्ष रोकने और हिंसक चरमपंथ को रोकने के लिए अत्यावश्यक साधन के रूप में संवाद की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता है”।
मोरातीनोस ने सामुदायिक व्यवहार, अंतर-सांस्कृतिक और अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा देकर और सोशल मीडिया का सकारात्मक रूप से प्रयोग करके घृणास्पद बातचीत का मुकाबला करके हिंसक चरमपंथ के लिए विरोधी-पक्ष प्रस्तुत करने में युवाओं की भूमिका पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा, “आखिरकार, ये युवा लोग ना केवल भविष्य के लिए बल्कि हमारे वर्तमान के लिए भी हमारी आशा हैं”। “उनका कार्य प्रस्ताव 225 और हिंसक चरमपंथ को रोकने के लिए कार्य-योजना के अनुसार यूएन सुरक्षा परिषद् के द्वारा आज्ञापित ‘युवा, शांति और सुरक्षा’ पर हालिया प्रगति अध्ययन में वर्णित अनुशंसाओं के अनुरूप है”।
अपने शुरूआती संबोधन में, यूएन एजुकेशनल, साइंटिफिक और कल्चरल आर्गेनाइज़ेशन (UNESCO) में सामाजिक एवं मानव विज्ञान हेतु सहायक महानिदेशक, नदा अल-नाशिफ ने अंतरसांस्कृतिक संवाद एवं पारस्परिक समझ को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर डाला।
इसपर टिप्पणी करते हुए कि संस्कृतियों और सभ्यताओं के बीच एक प्रभावी और कुशल संवाद स्थापित करने के लिए 10 वर्ष से अधिक पहले अज़रबैजान के द्वारा बाकू प्रोसेस को शुरू किया गया था, उन्होंने कहा कि जहाँ “हमने बहुत लंबी दूरी तय कर ली है”, वहीं निरंतरता एवं प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए ठोस कार्यों पर ध्यान देने और आगे की कार्यवाही करने की आवश्यकता है।
उन्होंने घृणा, असहिष्णुता और अज्ञानता का प्रसार करने वाली उभरती हुई नई विभाजनकारी ताकतों की ओर संकेत किया।
ऐसे समय पर जब विशिष्ट लोकवाद के दबावों के कारण सांस्कृतिक विविधता खतरे में है, उन्होंने उल्लेख किया कि “दुनिया हालिया शरणस्थान एवं विस्थापन से संबंधित इतिहास के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही है”।
उन्होंने कहा, “व्यक्तियों एवं समुदायों से बेहतर ढंग से जुड़ने में सक्षम नई तकनीकों का विभाजन एवं गलतफ़हमी के बीज बोने के लिए दुरूपयोग किया जा रहा है”
अल-नाशिफ ने इसपर जोर दिया कि “गहरे, कभी-कभी अप्रत्याशित रूपांतरों” से गुजर रहे समाजों में समावेशन एवं एकजुटता को अविलंब रूप से आधार प्रदान करने की आवश्यकता है, इसके साथ उन्होंने जोड़ा कि ऐसा करना स्थाई विकास के 2030 के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक नवप्रवर्तन को उत्प्रेरित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि, “आजकल की चुनौतियाँ जटिल हैं और वे किसी एक देश की सीमा तक सीमित नहीं हैं”। “एकपक्षीयता या अपवर्जन के लिए कोई जगह नहीं है।”
“मानवाधिकारों एवं परस्पर आदरभाव के आधार पर परिवर्तन को गले लगाने, इसे सकारात्मक दिशाओं में आकार देने, प्रत्येक महिला एवं पुरुष के लिए अधिक न्यायपूर्ण, समावेशी और स्थाई भविष्य को तैयार करने, का लक्ष्य होना ज़रूरी है।”
उन्होंने कहा, क्योंकि “संवाद कुंजी है” इसलिए “महिलाओं और पुरुषों के मस्तिष्क में शांति के प्रतिरक्षकों का निर्माण करना UNESCO के ध्येय के केंद्र में है”।
अल-नाशिफ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि UNESCO बिना थके “पूर्वाग्रह को क्षीण करके, अज्ञानता और उपेक्षा से लड़ के एक मानवाधिकार के रूप में शिक्षा, इसे हिंसक चरमपंथ को पैदा करने वाली प्रक्रियाओं को नि:शस्त्र करने का सबसे प्रभावी तरीका बताते हुए, की रक्षा करता है … समावेशी एवं दीर्घकालिक समाजों का निर्माण करने हेतु विविधता हमारी कुंजी है”।
अज़रबैजान के राष्ट्रपति, इलहाम अलियेव बाकू प्रोसेस के बारे में खुलकर बोले, इसके साथ उन्होंने अंतरसांस्कृतिक संवाद, इसे ”सही निर्णय लेने के लिए अच्छा और सकारात्मक मंच” बताते हुए, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान दिए जाने के बारे में भी बात की।
यह कहते हुए कि बाकू प्रोसेस यूरोप व शेष विश्व के बीच “एक सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है” उन्होंने जोर देकर कहा: हमें “सांस्कृतिक, अंतर-धार्मिक, राजनैतिक समस्याओं पर संवाद करने की आवश्यकता है।”
आर्गेनाईजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के महासचिव, यूसेफ बिन अहमद अल-ओथाइमीन ने खेद के साथ कहा कि आज दुनिया सभी प्रकार के भेद-भाव की साक्षी बन रही है।
संस्कृतियों के बीच संवाद को “पूर्णतया अत्यावश्यक” बताते हुए, उन्होंने दावा किया कि, “आतंकवाद का कोई धर्म, प्रजाति, राष्ट्रीयता नहीं होती है”।
यूरोपीय परिषद् की ओर से बोलते हुए, उप महासचिव गेब्रिएला बत्तैनी-ड्रैगोनी ने तर्क प्रस्तुत किया कि समान अधिकारों और सभी के सम्मान से पूर्ण समावेशित समाजों हेतु समझ की आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा, “अंतरसांस्कृतिक संवाद का प्रचार कोई प्रतियोगिता नहीं है, बल्कि यह एक कभी भी समाप्त नहीं होने वाली चुनौती है” जिसके लिए व्यग्रता को कम करने और अज्ञानता को नष्ट करने हेतु शिक्षा की आवश्यकता होती है, इसके साथ जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि, पारस्परिक आश्वासनों के साथ, एक साथ आकर, सरकारें राजनैतिक इच्छाशक्ति के आधार पर सामाजिक समावेशन के लिए मार्ग तैयार करती हैं।
इस्लामिक एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल आर्गेनाइजेशन के महा-निदेशक, अब्दुलज़िया ओथमन अल्तवैज़री, अंतरसांस्कृतिक संवाद को सफल बनाने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता पर भावनात्मक होकर बोले।
दुनिया के निर्णय-कर्ताओं – वैश्विक महा शक्तियों से लेकर यूएन सुरक्षा परिषद् तक – को इस मोर्चे पर अत्यंत-आवश्यक प्रगति प्रदान करने में उनकी अक्षमताओं हेतु तिरस्कृत करते हुए, उन्होंने कहा, “हम राजनैतिक इच्छाशक्ति के बिना बढ़ते हुए चरमपंथ से लड़ नहीं सकते हैं”। [IDN-InDepthNews – 05 May 2019]
फोटो: बाकू, अज़रबैजान का एक दृश्य। क्रेडिट: कातसूहीरो असागिरी | IDN-INPS