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भारत के जनसाधारण ने प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को परास्त करना शुरू कर दिया है

सुधा रामचंद्रन द्वारा

बैंगलोर (आईडीएन) – 32 वर्षिय राजेस्वरी सिंह ने विश्व पृथ्वी दिवस पर एक छः-सप्ताह तक चलने वाले मैराथन अभियान की शुरुआत की, जिसमे वे एक सामान्य संदेश ‘प्लास्टिक का प्रयोग करना बंद करें’ को फैलाते हुए, 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर नई दिल्ली पहुँचने के लिए पश्चिम भारत के वड़ोदरा से तकरीबन 1,100 किलोमीटर की पदयात्रा करेंगी, और इस पदयात्रा के दौरान उनका जोर पूरे रास्ते किसी भी प्रकार के प्लास्टिक की पैकिंग वाले पेय पदार्थों या खाद्य पदार्थों का प्रयोग नहीं करने पर रहेगा।

वास्तव में, उन्होंने पिछले दशक से किसी भी प्रकार के प्लास्टिक का प्रयोग नहीं किया है। इसके अतिरिक्त, उनका संदेश इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस के विषय – ‘प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को परास्त करें’ (‘Beat plastic pollution’) – को स्वर प्रदान करता है। विश्व में 10 सबसे अधिक प्लास्टिक का प्रयोग करने वाले देशों में स्थान रखने वाला भारत, इस बार वैश्विक मेज़बान की भूमिका निभा रहा है।

भारत प्रतिवर्ष लगभग 5.6 मीट्रिक टन (Mt) प्लास्टिक का कचरा पैदा करता है, जिसमे से इसकी राजधानी नई दिल्ली अकेली प्रतिदिन 9,600 टन प्लास्टिक का कचरा पैदा करती है। विश्व की दस नदियाँ जो समुद्र में दुनिया का लगभग 90% प्लास्टिक कचरा पहुँचाने के लिए जिम्मेदार हैं उनमे से तीन भारत में बहती हैं: सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र।

दुनियाभर में प्लास्टिक का प्रदूषण संकट उत्पन्न करने वाले अनुपात तक पहुँच चुका है। जब से 1950 के दशक में प्लास्टिक ने उपभोक्ता हेतु निर्मित सामानों के उद्योग में घुसपैठ की है, तब से अबतक कचरा भराव क्षेत्रों और समुद्रों में प्लास्टिक कचरे के पहाड़ खड़े हो गए हैं।

साइंस एडवांसेज में छपे एक लेख के अनुसार, अबतक लगभग 8,300 मीट्रिक टन नवीन रूप से निर्मित शुद्ध प्लास्टिक में से, 6,300 मीट्रिक टन प्लास्टिक का कचरा पैदा हुआ है, जिसमे से 2015 तक 9% को रीसाइकल किया गया है तथा 12% को जला दिया गया है। शेष (79%) कचरा भराव क्षेत्रों या प्राकृतिक वातावरण में जमा है, जिमसे से अधिकतर नदियों में जाता है और फिर समुद्रों में जाकर गिरता है। अगर वर्तमान चलन के अनुसार प्लास्टिक का उत्पादन और उसके कचरे का प्रबंधन किया जाता रहा, तो 2050 तक दुनियाभर के कचरा भराव क्षेत्रों और प्राकृतिक वातावरण में लगभग 12,000 मीट्रिक टन कचरा पड़ा होगा।

यूनाइटेड नेशन्स एन्वाइरन्मेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) की चेतावनी के अनुसार, प्रदूषण के बढ़ने की इस दर से 2050 तक समुद्र में मछली से ज्यादा प्लास्टिक होगा।

प्लास्टिक का प्रदूषण गंभीर चिंता का कारण है। प्लास्टिक में ज़हरीले तत्व होते हैं जिनका हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह प्राकृतिक तरीके से सड़कर नष्ट भी नहीं होता है।

लवणयुक्त जल और पराबैंगनी प्रकाश के संपर्क में आने पर, प्लास्टिक ‘सूक्ष्मप्लास्टिक’ के टुकड़ों में विभाजित हो जाता है, जिन्हें समुद्र में अनजाने में विभिन्न प्रकार के जीवों और जंतुओं के द्वारा खा लिया जाता है। चेन्नई में स्थित केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान में प्रधान वैज्ञानिक, वी. कृपा का कहना है कि, “भारत में, प्लास्टिक के सूक्ष्म और दीर्घ तत्वों को सार्डाइन मछलियों से शुरू करके ट्यूना मछलियों और समुद्री पक्षियों तक में सभी भोज्य एवं पोषक पदार्थों एवं जीवों के सभी स्तरों पर देखा गया है।”

भारत की सडकों पर कचरे के ढेरों में पड़े हुए पाए जाने वाला, स्टायरोफोम के कपों, सामान पैक करने वाली सामग्रियों या पॉलिथीन की थैलियों के रूप में, प्लास्टिक भी कम जानलेवा नहीं होता है। रोड पर पड़े कूड़े के ढेरों में गायों और कुत्तों को खाते देखना कोई अचरज की बात नहीं है। वे अनजाने में पॉलिथीन की थैलियों को निगल जाते हैं। फरवरी में, पूर्वी भारत में पटना में एक मामले में पशुओं के द्वारा इस प्रकार के पदार्थों को खाने के प्रभाव को देखा गया, जहाँ पशु-चिकित्सकों ने एक 6 वर्ष की गाय के पेट से 80 किलो पॉलिथीन का कचरा निकाला।

भारत अपने 66% प्लास्टिक कचरे को रीसाइकल करता है, जो विश्व के 22% के औसत से कहीं अधिक है। भारत के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक अधिकारी ने आईडीएन को बताया कि, “भारत घरेलु एवं औद्योगिक उपयोग हेतु प्लास्टिक से ईंधन बनाने पर काम कर रहा है और यद्यपि इसने अभी प्लास्टिक से ईंधन बनाने के व्यावसायिक प्रतिरूपों को नहीं अपनाया है, देश में प्लास्टिक को ईंधन में परिवर्तित करने वाले बड़े संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं।”

इसके अलावा, भारत रोड का निर्माण करने के लिए प्लास्टिक के कचरे को टार में भी परिवर्तित कर रहा है। भारत रीसाइकल किए गए प्लास्टिक से लगभग 100,000 किलोमीटर रोड का निर्माण कर चुका है।

हालांकि, रीसाइकल किए गए प्लास्टिक से केवल आंशिक रूप से ही प्लास्टिक संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिलता है। प्लास्टिक के सामानों के उपयोग में कमी लाई जानी चाहिए या जैसा कि सिंह ने किया है हमारी जिंदगियों से प्लास्टिक से बने सामानों को पूरी तरह से हटाने की ज़रुरत है।

भारत सरकार ने प्लास्टिक के सामानों के निर्माण में कमी लाने के लिए ही प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को लागू किया है। इन नियमों में उल्लेख किया गया है कि मार्च 2018 तक रीसाइकल नहीं किए जा सकने वाले अनेक परतों वाले प्लास्टिक (एमएलपी) को आम जनता के द्वारा प्रयोग में लिए जाने से पूरी तरह से बाहर कर दिया जायेगा। कचरा व्यवस्था को प्रबंधित करने के साथ-साथ पैदा हुए प्लास्टिक कचरे को पुनः खरीदने की जिम्मेदारी को पूरा करने का दायित्व निर्माताओं पर डाला गया।

ऐसा होने पर भी, उद्योगों के दबाव में, सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018 प्लास्टिक का निर्माण या उपयोग करने वाले व्यवसायों के पक्ष में है। जहाँ 2016 के नियम केवल रीसाइकल किए जा सकने वाले एमएलपी का उपयोग करने की अनुमति देते है, वहीं 2018 के नियम उन एमएलपी का उपयोग करने की अनुमति प्रदान करते हैं जिनसे ‘ऊर्जा पुन: प्राप्त की जा सकती है’ और जिनका ‘वैकल्पिक रूप से उपयोग’ किया जा सकता है। नए नियम प्लास्टिक उत्पादकों को यह घोषित करके उत्पादन करते रहने की अनुमति प्रदान करते हैं कि “अगर रीसाइकल नहीं किया गया है, तो उनके उत्पादों का उपयोग किसी अन्य प्रकार से किया जा सकता सकता है।” इस समय प्रभावी 2018 के नियमों ने “सम्पूर्ण प्रतिबंध” को हटा दिया है जो 2016 के नियमों मौजूद था।

पर्यावरण कार्यकर्ता विवेचन करते हैं कि 33 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदूषण नियंत्रण मंडल प्लास्टिक के प्रयोग पर रोक लगाने के बारे में गंभीर नहीं हैं। दक्षिण के राज्य कर्णाटक में, सरकार ने रोड का निर्माण करने के लिए डामर के साथ प्लास्टिक मिलाना अनिवार्य कर दिया है। फिर भी कचरा भराव क्षेत्र में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक डाला जा रहा है।

अधिकतर भारतीय राज्यों में प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग पर प्रतिबंध के स्तर में अंतर है। फिर भी, प्लास्टिक का कूड़ा सडकों पर पड़ा मिलता है और भारत की नदियों को जाम करता है। प्लास्टिक की थैलियों पर रोक लगानी ज़रूरी है और ग्राहकों को सस्ते विकल्प प्रदान किए जाने चाहिएं।

ठोस कचरे के प्रबंधन से संबंधित मुद्दों पर बैंगलोर ईको टीम के साथ काम करने वाली बैंगलूरू की निवासी कार्यकर्ता, सीमा शर्मा, तर्क प्रस्तुत करती हैं कि प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगाने वाले नियम “ठीक” हैं किन्तु उनका सही ढ़ंग से क्रियान्वयन नहीं किया जाता है। वे इंगित करती हैं कि, कर्णाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल स्वयं अपने कार्यालय में प्लास्टिक का प्रयोग करता है।

हो सकता है भारतीय अधिकारी बेपरवाह हैं किन्तु धीरे-धीरे जनसाधारण प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण का समाधान करने पर काम करने लगा है। उनकी आजीविका पर प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण के कारण पड़ने वाले प्रभाव की वजह से तटवर्ती जल क्षेत्रों को प्लास्टिक के कूड़े से मुक्त करने के कार्यक्रमों में भारतीय मछुआरे भी हिस्सा ले रहे हैं। दक्षिण के केरल राज्य की सरकार के द्वारा आरंभ की गई ‘सुचित्व सागरम’ (स्वच्छ समुद्र) परियोजन के सहभागियों के रूप में, मछुआरे मछलियों के साथ जाल में फंसने वाले प्लास्टिक के कूड़े को कलेक्शन सेंटर्स में ले जाते हैं जहाँ प्लास्टिक के कूड़े को छाँटा जाता है और बाद में इसे रीसाइकल किया जाता है। कोल्लम के नज़दीक शक्तिकुलंगरा और निंदाकरा के जुड़वाँ बंदरगाह, जहाँ मछली पकड़ी जाती है, में इस परियोजना की सफलता से प्रोत्साहित होकर सरकार इस परियोजना को केरल के समुद्र तटों पर स्थित अन्य मछली पकड़ने वाले गाँवों में भी शुरू करना चाहती है।

ग्लोबल अलाइअन्स फॉर इन्सिनरेटर ऑल्टर्नेटिव्स (जीऐआईऐ) एशिया प्रशांत की भारतीय समन्वयक प्रतिभा शर्मा का कहना है कि, पिछले पखवाड़े में, भारतभर के सिविल सोसाइटी समूह ने कचरा भराव क्षेत्रों और नदियों में पहले से बड़ी मात्रा में इकठ्ठा हो रहे प्लास्टिक में खतरनाक ढ़ंग से वृद्धि कर रहे रीसाइकल नहीं हो सकने वाली और एक-बार ही इस्तेमाल में लिए जाने वाली प्लास्टिक की पैकेजिंग के निर्माण, वितरण, और प्रसार में व्यावसायिक संघों की भूमिका का परीक्षण किया है। इसका उद्देश्य प्लास्टिक के कचरे में “बहुत बड़ी मात्र में कमी आए” यह सुनिश्चित करने के लिए नवीन प्रक्रियाओं को लाने के लिए आह्वान करने हेतु डेटा को एकत्रित करना है।

भारत में प्लास्टिक के प्रयोग के कारण मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले खतरनाक प्रभाव के बारे में जन-जागरूकता बहुत कम है। आशा है कि, आने वाले विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने के साथ प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के सिंह के अभियान और सरकार व अनगिनत सिविल सोसाइटी समूहों के प्रयास इस संकट से दो-दो हाथ कर रहे भारत और अन्य देशों की स्थिति में बदलाव लायेंगे। [आईडीएन-InDepthNews – 1 जून 2018]