*फ्रैड कूवोरनू के विचार-मत *
न्यूयॉर्क (आईडीएन)- मानव तस्करी से विभिन्न माफिया विश्वभर में 150 बिलीयन डॉलर अर्जित करते हैं, उसमें से 100 बिलियन (अरब) डॉलर अफ्रीकन लोगों की तस्करी से आते हैं। हर तस्करी के जाल में फंसी अफ्रीकन महिला नाईजीरियन माफिया के लिए 60,000 यूरो की आसामी होती है। 10,000 तस्करीयाँ इटली में हर साल 600 मिलीयन यूरो माफिया को देती हैं। कोई भी अफ्रीकन जानबूझ कर इस दलदल में नहीं फंसेगा यदि उन्हें पता हो कि यूरोप में क्या भयावह सच्चाई उनका ईंतजार कर रही है।
मैं आंतरिक इटालियन गृहयुद्ध में नहीं पड़ना चाहता जो कि गिरोह गुटबाजी पर आधारित है नाकि लोगों पर, परंतु एक अफ्रीकन मूल के वंशज इटालियन होने के नाते एवं अब अमेरीका में एक आप्रवासी नागरीक होने के नाते, मेरा विश्वास है कि अब समय आ गया है जब आप्रवासन बारे में बात की जाए और इसे, या यूं कहें एक जगह से दूसरी जगह बसने को, एक संरचनात्मक घटना जो ये है जिसके बहुत से पेंच (स्तर) हैं इसको एक समस्या के रूप में लिया जाए, नाकि एक राजनैतिक मुद्दे की तरह या फिर उन माता-पिता के बीच फंसे इधर-उधर घसीटते हुए बच्चों की तरह जिनको तलाक में भयादोहन के हथियार के रूप इस्तेमाल किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ(यूएन) के आंकलन के अनुसार, लाखों मानव हर साल तस्करी किए जाते हैं 150 बिलियन डॉलर के मुनाफे के साथ…..मैं फिर से दोहराता हूँ 150 बिलियन. मैं नहीं जानता कि आप कभी असली अफ्रीका में रहे हैं या वहाँ काम किया है या नहीं एवं किन अफ्रीकन लोगों को आप इटली में जानते हैं, या यदि आप एक पत्रकार हैं गैर-इटालियन अखबारों के लिए सूचना एकत्र कर रहे हैं, परंतु मानव तस्करी अलग- अलग अन्य साधनों में बंटी हुई ( बच्चों, शरीर के अंगों, वेश्यावृत्ति ) से शुरू होती है, यह महज एक परिघटना नहीं है जिससे केवल “लिटिल इटली” बंदरगाह या बिना बंदरगाह के ईलाकों को असर पड़ता हो, बल्कि एक विश्व परिघटना है जिससे अफ्रीकन, एशियन एवं मैक्सिकन माफिया को 150 बिलियन धन जमा होता है – एवं मैं फिर दोहराता हूँ 150 बिलियन प्रतिवर्ष
इस धन को फिर इन देशों की गरीब जनता को पुनर्वितरित नहीं किया जाता हैं परंतु उनको और भी हर प्रकार के शोषणों के अधीन कर दिया जाता है, पहले से ही जर्जर राजनैतिक संतुलन को अस्थिर करते हुए, ड्रग्स व हथियारों में पुनर्निवेश करके।
क्या आपको कभी आश्चर्य नहीं होता कि क्यों गरीबी के समान मायनों एवं विश्वास के बावजूद कि यूरोप एक खुशहाल भूमि है, मोजांबिक, अंगोला, केन्या से आए हुए बहुत कम लोग हैं, या फिर जो घाना से आए हों (मेरा मूल देश जिसकी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद दर) 7 प्रतिशत है और युद्ध तथा अत्याचार ना के बराबर है वहाँ) क्यूं आते हैं यहाँ ?
क्यूंकि नाईजीरियन माफिया जैसे गिरोह हैं जो गाँवों में भ्रामक प्रचार करते हैं लोगों को ये बताते हुए कि 4 सप्ताह के 300 यूरो में इटली में आना संभव है फिर वहाँ से यदि वे चाहें तो अन्य यूरोपीयन देशों में बस सकते हैं। पर असल में जैसे ही ये लोग वैन में चढते हैं उनको लूट लिया जाता है अचानक से ये शुल्क 1000 डॉलर तक बढ़ा देते हैं, फिर जब लिबीया पहुँचते हैं तो शुल्क बढ़ जाता है, जहाँ उनको 1000 डॉलर और देने के लिए पूछा जाता है अंतिम जगह पार करने के लिए। पर ये सब, 4 सप्ताह में नहीं होता है, जैसा कि उन लोगों ने वादा किया था, पर औसतन एक साल के ईंतजार के साथ में।
इसमें ये भी जोड़ना चाहिए कि अवयस्क जिनको उन महिलाओं पर विश्वास करके थोप दिया जाता है जो उनकी असली माताएं नहीं होती हैं और यूरोप में बसने के बाद वो गायब हो जाती हैं, और सैंकड़ों महिलाएं को इसके बजाय वेश्यावृत्ति में झोंक दिया जाता है, हर एक महिला 60,000 यूरो कीमत की होती है, माफिया 10000 यूरो इटली की तरफ तस्करी के लिए ही ले लेता है, नाईजीरियन माफिया 600 मिलीयन यूरो का मुनाफा कमाता है एक साल में।
इसमें आगे यह जोड़ा जाए अफ्रीका क्या गंवाता है : युवा संसाधन। मैं घानीयन लोगों से मिला हूँ जिन्होंने अपनी टैक्सी बेच दी या अपना छोटा रेवड़ बेच दिया यूरोप आने के लिए और यहाँ आकर गलियों में भीख मांगने के लिए मजबूर हो गए या सब कुछ ठीक रहा तो 3 यूरो प्रतिघंटा कमा लिए बस, जानवरों की तरह उनके साथ बर्ताव किया जाता है, और वो लोग पैसे की बचत भी नहीं कर सकते जैसे उनकी योजना थी।
यदि वो वापस भी जाना चाहें तो भी कभी नहीं जा सकते शर्मिंदगी की वजह से उनको नहीं पता गाँव वालों को क्या बोलेंगे, वो नहीं जानते कैसे यूरोप तक जाने के लिए खर्च हुए पैसे को सही ठहरायेंगे; इसके बजाय वो फेसबुक पर सेल्फीयाँ डालकर अपने घावों पर मलहम लगाते हैं ये दिखाते हुए कि सब कुछ सही है, शर्मिंदगी की वजह से सच्चाई नहीं बताते हैं, और दूसरे जवान लोग (अठारह-साल-उम्र वाले, बिना पढ़े लिखे) यूरोप आने का प्रयास करते हैं क्यूंकि उनको लगता है अमीर होना आसान है।
क्या जरूरत है इस नाईजीरियन माफिया के कुप्रबंधन को एवं गुलामी व्यापार और आपराधिक घोटाले को चालू रखने की, जैसे उनके ही प्रतिरूप एशिया में चला रहे हैं, क्या चलता रहेगा?
किसके भले के लिए है यह? अफ्रीकन महाद्वीप के लिए भला नहीं है यह। यह एक भी अफ्रीकन के लिए भला नहीं है जो यूरोप पहुँचते हैं क्यूंकि 90 प्रतिशत भूमिगत हो जाते हैं और किसी भी मामले में उनको सभ्य काम कभी नहीं मिलेगा। यह इटली के लिए भला नहीं है, जिसके पास आर्थिक और सांस्कृतिक संसाधन नहीं हैं इतने सारे लोगों का प्रबंध करने एवं पालने-पोषने के लिए जो कोई योगदान नहीं दे सकते, विशेषकर ऐसे देश में जहाँ इन युवा अफ्रीकन लोगों के साथियों में से 40 प्रतिशत बिना रोजगार के हैं पहले से ही। और यह यूरोपीयन छवि जो अफ्रीकन लोगों के प्रति है उसके लिए भी सही नहीं है क्यूंकि वह लड़का या लड़की हमेशा पीड़ीत के रूप में देखा जाता है, एक गरीब व्यक्ति, एक कमजोर व्यक्ति।
यह एक अफ्रीकन होने के नाते, या एक इंसान होने के नाते, सबसे जातीवादी- उपनिवेशवाद के साथ- व्यवहार जो हो सकता है वह है, क्यूंकि यह किसी की मदद नहीं करता सिवाय माफिया के और वो जो इस धंधे में नेक एवं बुरी नियत से काम करते हैं जो तुरंत सहायता के वादों से जुड़ी हुई है।
5,000 डॉलरों में बहुत से अफ्रीकन देशों में छोटा सा धंधा खोलना आसान है बजाय इटली आके भीख मांगने के, यदि केवल यह उपाय स्पष्ट एवं प्रचलित होता तो, 90 प्रतिशत लोग इटली के लिए कभी नहीं निकलते।
विशेषकर वो जो छठवें साल पूरे कर चुके हैं और 20 साल के हैं। यह 30 साल पहले वाला आप्रावसान जैसा नहीं है जहाँ बहुत से 30 साल वाले, कुछ स्नातक, पर बहुत से उच्च शिक्षित बंदे रहे और उनको फिर भी फैक्टरीयों में काम नसीब हो गया और शालीन हालात में जीवन-यापन किया।
मैं समुद्र के पास माफिया की (इटालियन बंदरगाह के पास) सहायता कर रहे एनजीओ (गैर सामाजिक संगठनों), की स्थिति नहीं जानता, पर ये भली-भांति जानता हूँ कि जो अफ्रीका में सक्रीय हैं वो ज्यादातर केवल परजीवी ग्रस्त तंत्र का हिस्सा हैं। महानतम अफ्रीकन विचारकों एवं सच्चे राजनैतिक नेताओं के लिए, सबसे पहला काम है कि सभी एनजीओ को अफ्रीका से निकाल फैंके, क्यूंकि, जो सदस्य वहाँ काम करते हैं वो भी- युवा स्वयंसेवी- सभी माफिया के भरोसेमंद हैं, एनजीओ तंत्र हमेशा अफ्रीका को नियंत्रण करने एवं अस्थिर करने का काम करता रहा है, साथ ही साथ माफिया की सहायता के लिए गुलाम तैयार करता है, दान के आर्थिक व्यापारों को नजरअंदाज करना और एनजीओ द्वारा नेताओं को प्रबंधित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाना गरीब अफ्रीकी बच्चों वाली छवि का दोहन करके।
बहुत हो गया ये अनुत्पादक, जातिवादी, जाहिल विचारों का तरीका। ये देखना दिलचस्प होगा कि ये एनजीओ स्कैंपिया (नेपल्स का एक उपनगर जहाँ उच्च अपराध दर है- ईडी.) में कोई कदम उठाएं कुछ नेपोलिटन बच्चों की छवियां विज्ञापनों में छाप करके देखें।
हम तुम्हारे इस आधार-विचार वाली बातों से थक चुके है तुम्हारे आदर्शवादी इरादों या तुम्हारी फासिस्ट या तानाशाही-विरोधी लड़ाईयों से एक ऐसे महाद्वीप के जर्रों पर जिसके बारे में आप कुछ नहीं जानते या जिसके बारे में आप रूमानी हुए एवं आदर्श माना था, और यह कि तुमने जिसको अपने आपको अन्य से बेहतर होने के एहसास को जगाने एवं अपने उच्चतम शक्ति होने की स्थिति को स्थापित करने के लिए प्रयोग किया है। अब समय है गंभीर विश्लेषण का और सफलता के मजबूत उपाय जमाने होंगे, नाकि एक दूसरे दल के प्रति जहर भरना, क्यूंकि कोई भी जीते हारेगा अफ्रीका ही।
एडो राज्य(नाईजीरिया) में से किसी गाँव की रिपोर्ट लेना उपयोगी रहेगा, मक्कार, विद्वेषी एवं आपराधिक कल्पना जिस हद तक वहाँ तक पहुँच चुकी है उसको समझने के लिए और आपको पता लगेगा कि शायद एक अनपढ़ जवान बीस-वर्षीय को एवं उसके परिवार को गुमराह करना और यातायात करना तो नीचे से नीचा पाप है जो यह शक्तिशाली और बहुत कम आंका गया आपाराधिक संगठन रोज करता है, लोगों की मजबूरी का एवं मासूमियत का फायदा उठाता है, उनमें से कुछ तो कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं… कि एक नवजात शिशु को भी 100 डॉलरों में बेच देते हैं।
अगर यह अभी भी सहा जा रहा है तो, खतरा केवल इटली के लिए नहीं है, पर अफ्रीकन देशों के लिए भी है जहाँ तानाशाहों की समस्या के साथ नार्को-तस्करों की मौजूदगी जुड़कर समस्या बढ़ गयी है जो कोलंबिया के एस्कोबार या मैक्सिको के एल चापो वाले स्तर तक पहुँच चुकी है, साथ में अधिक मौतें और जो है उसका भी कम विकास।
* फिल्म निर्माता फ्रैड कूवोरनू 1971 में बोलोन्या में जन्में थे एक घानीयन पिता एवं इटालियन माता की संतान। राजनैतिक विज्ञान में उपाधि हासिल करने के बाद, उन्होंने एक रेडियो एवं टेलीविजन लेखक–निर्माता के तौर पर काम किया, आर.ए.आई., इटालियन राष्ट्रीय लोक प्रसारण कंपनी के साथ मिलकर, एवं विविध निर्माता कंपनीयों के साथ। 2010 में, उन्होंने ‘इनसाइड बफेलो’, का निर्माण एवं निर्देशन किया, 92वीं इंफैंट्री डिवीजन का एक ऐतिहासिक लेखा–जोखा, अफ्रीकन–अमेरिकन अलग–अलग यूनिट जो द्वीतीय विश्वयुद्ध में लड़ी थी। फिल हैरिस द्वारा अनुवादित। [ आईडीएन–ईनडेफ्थन्यूज– 20 जुलाई 2018]