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वैश्विक भूख को जड़ों से निपटना

भिक्खू बोधी का दृष्टिकोण

वैश्विक भूख से निपटने के लिए ज़रूरी है हम उसकी मूलभूत कारणों को पहचानें और उसका जड़ों से ख़ात्मा करें. भिक्खू बोधी लिखते हैं, इसके लिए न केवल परिवर्तनकारी नीतियों को अपनाना आवश्यक होगा, बल्कि हमारे अपने मूल्यों और दृष्टिकोणों में भी मौलिक परिवर्तन लाना ज़रूरी होगा.

न्यूयॉर्क (आइडीएन) – बुद्ध यह सिखाते हैं कि किसी भी समस्या का प्रभावी ढंग से हल करना है तो हमें उसके अंतर्निहित कारणों को दूर करना होगा. जब अस्तित्वगत पीड़ा को ख़त्म करने के लिए बुद्ध स्वयं इस सिद्धांत को लागू करते हैं, उसी पद्धति का उपयोग ऐसी कई चुनौतियों से निपटने के लिए किया जा सकता है जिनका सामना हम अपने जीवन के सामाजिक और आर्थिक आयामों में कर रहे हैं. चाहे वो नस्लीय अन्याय हो, आर्थिक विषमताएं हों या फिर जलवायु विघटन, इन समस्याओं का हल करने के लिए हमें सतह के नीचे गहराई तक जाकर जड़ों को उखाड़ फेंकना होगा जहां से वे पैदा हो रही हैं.

ऑक्सफ़ैम इंटरनेशनल द्वारा हाल ही में जारी एक मीडिया रिपोर्ट   भूख का वायरस कई गुना बढ़ा है (The Hunger Virus Multiplies), में वैश्विक भूख के निपटने के लिए इसी तरह की पद्धति अपनाई गई है. जबकि कोविड महामारी ने वैश्विक भूख को हमारी जागरूकता के बाहरी दायरों से धकेल दिया हो, इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि वास्तव में हर दिन वायरस से ज़्यादा भूख से लोग मर रहे हैं. अनुमानित मृत्युदर के हिसाब से, कोविड से प्रति मिनट 7 जानें जा रही हैं जबकि भूख से प्रति मिनट 11 लोग दम तोड़ रहे हैं.

हालांकि, कोरोनावायरस जबसे आया, तबसे उसने भूख से मृत्यु दर को कोरोना-पूर्व काल की तुलना में भी ज़्यादा बढ़ा दिया. इस रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक साल में, इस महामारी ने 2 करोड़ और लोगों को खाद्य असुरक्षा के चरम स्तर पर पहुंचा दिया, जबकि अकाल जैसी परिस्थितियों में जीने वाले लोगों की संख्या छह गुना बढ़ोतरी के साथ 5,20,000 से भी ज़्यादा हो गई.

इस रिपोर्ट में यह पता लगाया गया कि तीव्र भूख से मृत्युदर के लिए तीन गहरे कारण हैं, जिन्हें रिपोर्ट ने “घातक सी (C)” कहा गया: संघर्ष (conflict), कोविड (COVID) और जयवायु संकट (climate crisis) संघर्ष  वैश्विक भूख का एक मात्र शक्तिशाली चालक है जिसने 23 देशों के लगभग 10 करोड़ लोगों को खाद्य असुरक्षा के खतरनाक स्तर पर और यहां तक कि अकाल की स्थिति में धकेल दिया.

संघर्ष न सिर्फ कृषि उत्पादन को बाधित करता है और भोजन तक पहुंच को अवरुद्ध कर देता है, बल्कि लंबे युद्ध में यह बात आम है कि युद्धरत दल अपने विरोधियों को परास्त करने के लिए जानबूझकर भुखमरी को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. वो मानवीय राहत को रोक सकते हैं, स्थानीय बाजारों पर बमबारी कर सकते हैं, खेतों में आग लगा सकते हैं, या पशुधन को मार सकते हैं — ताकि लोगों को, विशेष रूप से असहाय नागरिकों को भोजन और पानी से वंचित कर दिया जा सके.

आर्थिक कठिनाई, जोकि वैश्विक भूख को बढ़ाने वाला दूसरा बड़ा कारक है, कोविड महामारी की वजह से पिछले दो सालों में बेतहाशा बढ़ गई है. महामारी के चलते दुनिया भर में लॉकडाउन लगा दिए गए थे, जिससे गरीबी का स्तर ऊपर चला गया और भूख में तेज वृद्धि देखी गई. पिछले साल गरीबी 16 फ़ीसदी बढ़ गई और 17 देशों के 4 करोड़ से ज़्यादा लोगों भूखमरी का सामना करना पड़ा. खाद्य उत्पादन में गिरावट आने के कारण पिछले साल दुनिया भर में भोजन की कीमतें लगभग 40 प्रतिशत बढ़ गईं, जोकि पिछले एक दशक में सबसे बड़ी वृद्धि है.

इससे भोजन उपलब्ध होने के बावजूद भी कई लोगों के लिए उसे खरीदना मुश्किल हो गया. इसका सबसे बुरा असर महिलाओं, विस्थापित लोगों और असंगठित कामगारों पर पड़ा. लेकिन दूसरी ओर, कार्पोर्ट जगत के अभिजात्य वर्ग ने तो महामारी को लाभ का जबर्दस्त जरिया बना लिया और अभूतपूर्व मुनाफ़ा अर्जित किया. साल 2020 में दस सबसे अमीर लोगों की संपत्ति में 413 डॉलर की बढ़ोतरी हुई और मुठ्ठी भर रईसों के हाथों में संपत्ति का जमाव का सिलसिला इस साल भी जारी है.

और वैश्विक भूख का तीसरा चालक है जलवायु संकट. पिछले साल जलवायु परिवर्तन से जुड़े चरम मौसम की घटनाओं से अभूतपूर्व तबाई हुई. रिपोर्ट के मुताबिक, तूफ़ान, बाढ़ और सूखा जैसी जलवायु आपदाओं ने 15 देशों के लगभग 1.6 करोड़ लोगों को भूख के संकट के स्तर पर धकेल दिया. रिपोर्ट बताती है कि प्रत्येक जलवायु आपदा हमें गरीबी और भूख की गहराई की ओर धकेल देती है. दुर्भाग्य से, जलवायु की मार उन देशों को सबसे ज़्यादा झेलनी पड़ रही है जिनकी जीवाश्म ईंधन की खपत के निम्नतम स्तर पर है.

इस वैश्विक भूख के संकट को बौद्ध दृष्टिकोण से देखते हुए, मैं यह मानता हूं कि ऑक्सफैम की रिपोर्ट में उल्लिखित भूख के तीन कारणों की जड़ में कार्य-कारण का एक गहरा जाल छिपा है जो अंततः मानव मन से ही उत्पन्न होता है. संघर्ष और युद्ध, चरम आर्थिक असमानता, और पहले से कहीं ज़्यादा घातक जलवायु तबाही की बुनियाद पर हम “तीन मूल अशुद्धियां” पाएंगे – लालच, घृणा और भ्रम – और साथ ही उनकी कई शाखाएं.

हालांकि हम यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि मानव मन के इन काले स्वभावों को वैश्विक स्तर पर कभी समाप्त कर दिया जाएगा, लेकिन अगर हमें भूख और गरीबी की आपस में गुंथी हुई समस्याओं का हल करना है, तो हमें उनकी सामूहिक अभिव्यक्तियों को कम से कम एक पर्याप्त हद तक कम करना पड़ेगा.

आखिरकार, हमारी दुनिया में भूख का बना रहना जितना दोषपूर्ण नीतियों का संकेत, उतना ही एक नैतिक विफलता भी है. वैश्विक भूख को उल्लेखनीय स्तर पर कम करने के लिए हमें न सिर्फ सही नीतियों की – जोकि काफी महत्वपूर्ण भी हो सकती हैं – बल्कि हमारे मूल्यों में एक मौलिक पुनर्दिशा की ज़रूरत है जो आर्थिक अन्याय, सैन्यवाद और पर्यावरणीय विनाश की जड़ों को काट देती है. इस तरह के आंतरिक परिवर्तनों के बिना, नीतिगत बदलावों का प्रभाव अनिवार्य रूप से सीमित होगा और विरोधियों द्वारा कमज़ोर किया जाएगा.

गरीबी और भूख का उन्मूलन करने के जारी हमारे प्रयासों में मैं दो आंतरिक बदलावों को बेहद महत्वपूर्ण मानूंगा. एक हैहमारी सहानुभूति की भावना का विस्तार, उन तमाम लोगों को, जिन्हें जीने के लिए प्रति दिन कठोर जद्दोजहद का सामना करना पड़ रहा है, भाईचारा के साथ गले लगाने की इच्छा रखना. दूसरा है,लंबे समय में अच्छा करने की हमारी बुद्धिमान समझ,  ये देखने का विवेक कि हमारी वास्तविक सामान्य अच्छाई का विस्तार संकीर्ण आर्थिक सूचकों से आगे बढ़े; कि हम सब तभी फलेंगे-फूलेंगे जब हम सभी के लिए फलने-फूलने की परिस्थितियां पैदा करें.

ऑक्सफैम रिपोर्ट में चिन्हित किए गए वैश्विक भूख के प्रत्येक चालक से निपटने के साधन हमारे पास पहले से ही मौजूद हैं. हमें जो चाहिए वो हैं  दूरदर्शिता, संवेदना और नैतिक साहस जो उन्हें लागू करने और उन्हें व्यापक पैमाने पर बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी है.

सहानुभूति अपरिहार्य है, और इसके लिए हमें अपनी पहचान की भावना का विस्तार करने की ज़रूरत है. दैनिक कठिनाइयों का सामना करने वालों को केवल अमूर्त के रूप में नहीं — आंकड़ों के रूप में या दूर के “अन्य” के रूप में नहीं — बल्कि पूरी तरह से निहित गरिमा से संपन्न मनुष्यों के रूप में  मानना सीखना होगा. हमें उन्हें अनिवार्य रूप से अपने जैसे ही देखना चाहिए,  जो जीने, फलने-फूलने और अपने समुदायों में योगदान करने की अपनी मूल इच्छा को साझा करते हों. हमें यह देखना चाहिए कि उनका जीवन उनके लिए और उनसे प्यार करने वालों के लिए उतना ही मायने रखता है जितना कि हमारा जीवन हम में से प्रत्येक के लिए मायने रखता है.

लेकिन सहानुभूति अपने आप में पर्याप्त नहीं है. एक समान ग्रह को साझा करने वाली प्रजाति के तौर पर हमें अपनी वास्तविक दीर्घकालिक अच्छाई में स्पष्ट अंतर्दृष्टि की भी आवश्यकता है. इसका मतलब यह है कि हमें सफलता के मानदंड के रूप में स्टॉक मूल्यों से परे देखना चाहिए. वैश्विक नीति के चरम के के तौर पर तेज आर्थिक वृद्धि और निवेश पर रिटर्न के बजाए अन्य मानकों को लेना चाहिए. हमें सामाजिक एकजुटता और ग्रहीय स्थिरता के लिए अहम मूल्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए.

कम से कम सभी को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना, नस्लीय और लैंगिक समानता के लिए कमर कस लेना, प्राकृतिक पर्यावरण को व्यावसायिक हितों द्वारा अंधाधुंध शोषण और विनाश से बचाना आदि इसमें सम्मिलित होना चाहिए.

निश्चित रूप से, वैश्विक भूख का ख़ात्मा करने के लिए पेश की जा रही नीतियों और कार्यक्रमों की हमें वकालत करनी चाहिए. लेकिन ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों के पीछे हमारे विचारों और दृष्टिकोणों में बदलावों की ज़रूरत है: मानवीय भलाई की बेहतर समझ और हमारे साथ इस ग्रह को साझा करने वाले सभी की भलाई के प्रति एक व्यापक प्रतिबद्धता.

हमारी दृष्टि को व्यापक बनाकर हमें ये देखना होगा कि हम तभी फलेंगे-फूलेंगे जब हम सभी को फलने-फूलने की परिस्थितियां निर्मित करेंगे. सहानुभूति की व्यापक भावना के साथ हम ऐसी दुनिया के निर्माण के लिए प्रयास करेंगे जिसमें कोई भूखा न रहे. [आइडीएन-इनडेप्थन्यूज़ — 19 सितम्बर 2021]

नोट: भिक्खू बोधी बुद्धिस्ट ग्लोबल रिलीफ़ का संस्थापक हैं. 1944 में जेफ़री ब्लॉक के रूप में जन्मे भिक्खू बोधी एक अमेरिकी थेरवादा बौद्ध भिक्षु हैं, जिन्हें श्रीलंका में विधिवत् पादरी बनाया गया और वर्तमान में वे न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी क्षेत्र में पढ़ा रहे हैं.

फ़ोटो: भिक्खू बोधि. स्रोत: बुद्धिस्टडोर

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